३० दिन के अगले कदम

दिन २३: भविष्य के लिये परमेश्वर पर भरोसा रखे

क्या मेरा भविष्य उसके हाथ में सुरक्षित है?


मैं ही अल्फा और ओमेगा, पहिला और पिछला, आदि और अन्त हूँ।

प्रकाशितवाक्य 21: 6

जब मेरी पत्नी और मैं अपने जीवन की शुरूआत कर रहे थे। हम बहुत सारे घण्टें इस बारे में बातचीत करने में व्यतीत करते थे कि हमारे बच्चे कैसे संसार में सामना करेंगे। आज भी हम अचरज करते हैं लेकिन हमें यह विश्वास है कि भविष्य परमेश्वर के हाथ में है। चाहे जो हो हम उस पर विश्वास कर सकते हैं।

एैतिहासिक नजरिया परमेश्वर पर विश्वास करने की एक महत्वपूर्ण पृष्ठभूमि है। बाईबिल यह बताती है कि इतिहास का एक आदि और एक अंत भी है। वह एक सीधी लकीर है न कि जैसे कई धर्मों में मान्यता है वृत्ताकार, और इसके तीन बड़े चिन्ह है:

  • बाईबिल की पहली पंक्ति यह है “आदि में परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की (उत्पत्ति 1:1)। यीशु उपस्थित थे: "वह आदि ही से परमेश्वर के साथ थे" (यूहन्ना 1: 2).
  • छुटकारा और पुनरुद्धार। यीशु के जन्म, मृत्यु और पुनरुज्जीवन ने परमेश्वर की योजना को पूरा किया कि उसके साथ हमारा संबंध बहाल हो जाये। यह सारे इतिहास का केन्द्रबिन्दु बन गया।
  • हम पूर्तिकरण के समयकाल में है। बाईबिल ऐसी व्याख्या करते है इसलिये कि समयों के पूरे होने का ऐसा प्रबंध हो कि जो कुछ स्वर्ग में है, और जो कुछ पृथ्वी पर है, सब कुछ वह मसीह में एकत्र करें" (इफिसियों 1:10).

हम पूर्तिकरण के समयकाल में है। हरेक व्यक्ति, जिसमें आप भी शामिल हैं हरेक घटना का एक उद्देश्य है चाहे वह जनन हो चाहे मृत्यु हो अथवा वैज्ञानिक खोज ही क्यों न हो या एक भयानक तूफान।यह हाथ पर हाथ धरकर बैठने का समय नहीं है बल्कि चौकस होकर, कार्यरत होकर परमेश्वर पर सारी बातों के लिए भरोसा करना है क्योंकि वह महिमामय अंतिम अध्याय लिख रहे है। (देखिये मत्ती 24:42)

दिन २४: एक अनंत परिप्रेक्ष्य


आपके भविष्य के किस बारे में आप सबसे अधिक चिंतित है? क्या आप अपनी चिंता आज परमेश्वर को सौंप देंगें?