३० दिन के अगले कदम

दिन २७: जब हम ठोकर खाते है

मैं गिरने के बाद कैसे ऊठूँ?


उसकी दिव्य शक्ति ने हमें वह सब दिया है जो उसके ज्ञान से जीवन और भक्ति के लिये आवश्यक है।

2 पतरस 1:3

अपने आत्मिक जीवन का एक महत्वपूर्ण बिन्दु आपका गिरना है। यह तब होता है जब ऐसा अपेक्षित नहीं होता। आप अपने आत्मिक विकास में उन्नति कर रहे हो जैसे बुरी आदतों पर जय पाना, और तब झट से बिना किसी पूर्वसूचना के आप ऐसा कुछ करते हैं, जो “बेहद बेवकूफी” भरा था जैसे अचानक से क्रोध फूटना या फिर अपने सबसे करीबी मित्र को बेईज्जत करना है।

हम गिरने के तुरन्त बाद जो करते हैं वह बेहद महत्वपूर्ण है। यदि हम ध्यान नहीं रखते तो हम शर्म के अथवा ग्लानि के कारण प्रभु से दूर जा सकते हैं। “मैंने सब उड़ा दिया। मैं असफल हूँ” या अपनी सफाई पेश करेंगेः “वह मेरी बद्जुबान के काबिल है!“ हम जब इस राह को पकड़ लेते हैं तब फिर से ठीक होना मुश्किल होता चला जाता है।

दूसरा मार्ग जो क्षमा का है, इसके ठीक विरोध में कार्य करता है, और आपको परमेश्वर के और करीब आने में सहायक होता है। गिरने का उपाय यह है कि उसके पास जल्द से जल्द आ जायें, पूरी-पूरी ईमानदारी हो, अपनी गलती को माने और उससे क्षमा मांगे। आप न तो उसे चकित कर सकते हैं न ही उन्हें सदमा होगा, वह पहले से सब कुछ जानते हैं। यहां तक आप जो सोच रहे थे वह भी। परमेश्वर की क्या प्रतिक्रिया है? यदि हम अपना पाप का अंगीकार करते हैं, तो वह हमारे पापों को क्षमा करने और हमें सब अधर्मों से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है (1 यूहन्ना 1:9)। कितना बड़ा और महान वायदा है यह!

पहल करें। जब-जब गिरे उसके पास आयें, चाहें आपकी गलती बड़ी हो या छोटी। आपके ऐसा करने पर आप यह पायेंगे कि उसके प्रेम में और आपका विश्वास और उसकी व्यवस्था में आपका विश्वास दिनोंदिन विकसित होगा।

दिन २८: क्रूस के नज़दीक


क्या आप पाप करने पर परमेश्वर से क्षमा माँगने में फूर्ती करते है, या फिर आप इसे बाद के लिये छोड़ देते है?
किसी से क्षमा प्राप्ति के विषय में बात करें।